दत्तात्रेय,दत्त भगवान का प्रकटोउत्सव हर्षोल्लास से मंगलवार को मनाया जायेगा।

राजस्थान राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) बारां छीपाबड़ौद मंगलवार को मनाया जायेगा दत्तात्रेय दत्त भगवान का प्रकटोउत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा महंत सेवानन्द पुरी महाराज दत्तात्रेय भगवान के जीवन पर प्रकाश डालेगें साथ ही शास्त्रोक्त जन्म कथा सुनाई जावेगी।श्री हनुमान सिद्ध साधना आश्रम पर दत्तात्रेय भगवान का प्रकटोउत्सव मंगलवार को हर्षोल्लास से मनाया जायेगा।शंकर लाल नागर के अनुसार दत्त जयंती के अवसर पर मंगलवार को महंत सेवानन्द पुरी महाराज शास्त्रोक्त कथा का श्रवण कराएंगे।महंत पुरी महाराज ने कहा कि देश अभी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है जगह-जगह कोरोना महामारी के केश मिल रहे है दूसरी ओर कोरोना के समय अपनी मांगों को लेकर देश का अन्नदाता आंदोलन पर है तीसरी ओर सरकारी तंत्र देश के अंदर ओर देश की सुरक्षा सेनाऐं सीमाओं की रक्षा में मुस्तेद है इसके साथ ही आतंकवाद से भी देश के अन्दर घुसपैठियों ओर बाहर सीमाओं की रक्षा के लिए लड़ रही है ऐसे माहौल में देश की सांस्कृतिक परम्पराओं को निभाना भी अब आम ओर काश लोगों के लिए औपचारिकता भर रह गया है।महंत पुरी ने कहा की देश मे ऐसे विषम माहौल से उबरने के लिए हम सब को मिलकर तप,सेवा,सुमरण ओर देश के लिए समर्पण मार्ग की जरूरत है।भगवान दत्तात्रेय का कलयुग में त्रिगुणात्मक रूप एकता और आशा की किरण नजर आता है दत्त भगवान में सत,रज,तम तीनों गुणों का एकाकार है साथ ही त्रिदेव ब्रह्मा,विष्णु,महेश का भी एक रूप है भगवान दत्त जिनके नाम पर 10 नाम सन्यासियों के मार्ग बनें हुये है जिनपर चलकर वो देश की परम्पराओ ओर इतिहास को अक्षुण रखे हुये है। सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए अखाड़े भी बनें हुये है,महंत पुरी महाराज ने कहा कि मार्गशीर्ष माह (अगहन) में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है।इस बार दत्तात्रेय जयंती 29 दिसंबर को मनाई जाएगी।शास्त्रों में उल्लेख है कि दत्तात्रेय भक्तों के स्मरण करने मात्र से उनकी सहायता हेतु उपस्थित होते हैं इन्हें तीनों देवो का अवतार माना जाता है। ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों देवों की शक्तियां भगवान दत्तात्रेय में समाहित हैं,इनकी छःभुजाएं और तीन मुख हैं। इनके पितामह ऋषि अत्रि और माता अनुसूया हैं।भगवान दत्तात्रेय की जयंती पर मंदिरों में विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है तो चलिए जानते हैं कि इनका जन्म कैसे हुआ। महंत पुरी नेंन कहा कि एक बार नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे। नारद जी देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास गए और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करन लगे।तीनों देवीयों को सती अनुसूया की प्रशंसा सुनना बिलकुल भी रास नहीं आया।अहंकार में आकर वे सती अनुसूया से इर्ष्या करने लगी।जब नारद जी वहां से चले गये तब तीनों देवियां,सती अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगी उन्होंने अपने पतियों, ब्रह्मा,विष्णु और महेश से अनुसूया का पतिव्रत धर्म तोड़ने को कहा अतं में तीनों देवों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पड़ी जिसके बाद वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिक्षुक का वेश धारण करके गए।अपने द्वार पर भिक्षुक देखकर देवी अनुसूया उन्हें भिक्षा देने लगी। भिक्षुक का वेश धारण किए हुए देवों नें भिक्षा लेने से इंकार कर दिया,उन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की,देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई तभी उनके पति व्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी,तब तक हम भोजन नहीं करेगें।देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और अत्यधिक क्रोधित हो गई। लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली। जिसके पश्चात देवी ने अपने पति ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही तीनों बालरूप में आ गए। तीनों देवों के बालक बन जाने के बाद देवी अनुसूया नें उन्हें भरपेट भोजन कराया। जिसके बाद वे उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम-वात्सल्य से मां की तरह उन्हें पालने लगी।धीरे-धीरे करके दिन बीतने लगे। जब बहुत दिनों के पश्चात भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी।तीनों देवियों को अपनी भूल का अहसास हुआ,जिसके बाद वह तीनों ही माता अनुसूया के समक्ष गई और अपनी भूल मानते हुए क्षमा मांगी,एवं उनके पतिव्रत को प्रणाम किया, लेकिन माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना ही होगा यह सुनने के पश्चात तीनों देवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया। इनके तीन सिर तथा छ: हाथ थे,तीनों देवों को एक साथ बालरूप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत मूल स्वरुप प्रदान कर दिया।जन्म कथा बाद दत्तात्रेय भगवान का मानसिक और लौकिक पूजन आश्रम पर 29 दिसम्बर,मंगलवार को साधकों द्वारा किया जावेगा बाद में सोसियल डिस्टेन्स ओर मास्क के साथ प्रसाद वितरण कर कोरोना महामारी से संसार को बचाने की प्रार्थना एकल रूप से की जावेगी।कोरोना को देखते हुये आश्रम पर सामूहिक आयोजन नही होगा साधकों के लिए भी 29 दिसम्बर बिना मास्क आश्रम में प्रवेश वर्जित है।श्रद्धालुओं ओर दर्शकों को यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर दत्तात्रेय जन्मोत्सव ओर संक्षिप्त दत्त कथा ओर दत्तात्रेय व्रज कवच पाठ कार्यक्रम का प्रसारण भेजा जावेगा जिसे श्रवण कर साधक दैहिक दैविक भौतिक तापों से मुक्ति पा सकेगें ओर देश काल परिस्थितियों के अनुसार चल राष्ट्रधर्म का पालन कर देश के विकास में भागीदारी निभावें ऐसी हम सबको आशा ओर विश्वास है।

रिपोर्टर कुलदीप सिंह सिरोहीया बारां छीपाबड़ौद