राजस्थान (दैनिक कर्मभूमि) छीपाबड़ौद :सदियों से कृषि कार्य से जुड़ा धाकड़ समाज जो अपनें को धरणीधर का वंशज कह आज भी गर्व महसूस करता है।धाकड़ समाज वैसे तो गरीब ओबीसी में आता है भारत की कृषि मानसून का जुआ कहलाती है जो सच भी है हर किसान बैंक के गिरवीं है बैंक नही होते तो अमीरों के घर कृषक समाज मजदूरी करता फिरता समाज के शिक्षित वर्ग से अब कुछ लोग अमीर बन रहै है परन्तु आज समाज के किसी शादी-विवाह फंग्शन को देखते है तो बड़ा दुःख होता है समाज की सारी परम्परा ही खत्म होती नजर आ रही है।समाज पता नही किस समाज की नकल कर लड़की वालों से पैसा मांगने लगा है जो एक नई परम्परा पिछले 10 वर्षों से ज्यादा ही नजर आ रही है कई मध्यम परिवार जिनकी उठक-बैठक छोटे और बड़ो दोनों में है वो प्रतिष्ठा बचाने के चक्कर में सामाजिक कार्यक्रमों में ज्यादा पैसा खर्च कर पीस रहा है नमूना जब सामने आता है जब किराने के सामान भी 6 माही उधारी पर खाता है।आज से 40 वर्ष पहले समाज मे अनपढ़ लोगों का व्यवहार आज के पढे-लिखे लोगों से कुछ ज्यादा ही अच्छा था।जब धाकड़ समाज शराब,मांस को छूना तो दूर देखनें भर से नफरत करता था तत्कालीन ब्राह्मण समाज को भी धाकड़ समाज तीज त्यौहारों पर पवित्र भोजन के लिए देता था सहभोज का निमंत्रण तथा लड़के की शादी में लड़की के घर जाकर भी करता था उनकी मनवार।तत्कालीन समाज दहेज को तो पाप समझता आया था बल्कि धाकड़ जाति के नागर वंस में तो शादी के बाद मंदिरों तथा आस-पास से पधारे विप्र समाज को भूर(लडक़ी के माता-पिता द्वारा कन्या दान उसके बाद लङके के पिता द्वारा दिया जानें वाला ब्रह्ना समाज को भूर के रूप में दिया जाने वाला दान )दी जाती थी।ऐसे समाज मे दहेज का दानव घुस चुका है।कलयुगी संस्कृति बिना कन्या दान दिया जा रहा दहेज के रूप में सामान ओर पहले लड़का बारात लाता था अब लड़की जाती है लड़के के इच्छित स्थान पर बारात लेकर।समाज के खर्चे को बचाने के लिए सम्मेलन होते है आयोजीत परन्तु समाज एक कदम ओर बड़ गया सगाई ओर लग्न में कर देता है शादी जैसे आयोजन फिर सम्मेलन में जाता है धूल उड़ाने।अखिल भारतीय धाकड़ महा सभा की कार्य कारणी के सदस्यों नें समाज मे बढ़ रही कुरीतियों पर चिंता जताई साथ ही समाज की युवा पीढ़ी में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति पर भी दुःख जताया।समाज के प्रबुद्ध ओर संगठनो को चलाने वाले लोग चिंतन मनन करे और दहेज़ लेने-देंनें,शराब,गांजा,जर्दा जैसे नशा करनें वालों की काउंसलिंग कर समाज की युवा पीढ़ी को बचावें।जन्म दिन हो या मरण दिन चाहें कैसा भी हो खुशी का पल फ़्यूजील खर्च रोके तथा इस धन को समाज के होनहार बालकों की शिक्षा पर खर्च करे धाकड़ दान बैंक बना उसमें दान को संरक्षित कर धाकड़ स्कूल धर्मशाला,प्याऊ,कृषि प्रयोग शाला,बीज भंडार आदि बनाने में खर्च करे तो समाज का भला हो सकेगा।
*रिपोर्टर कुलदीप सिंह सिरोहीया बारां छीपाबड़ौद संवाददाता इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मिडिया प्रभारी राजस्थान स्टेट हैड*
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