ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पं दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर विविध आयोजन

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट: महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के दीन दयाल उपाध्याय कौशल केंद्र द्वारा एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर कौशल केंद्र के छात्र-छात्राओं द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। एकल डांस सामूहिक डांस, एकांकी कार्यक्रम के आकर्षण रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती, पंडित दीनदयाल उपाध्याय तथा भारत रत्न नानाजी देशमुख के चित्रों पर माल्यार्पण ,पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्वलन के साथ ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर भरत मिश्रा ने किया। प्रारंभ में छात्रा वैष्णवी ने गणेश वंदना प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए विश्वविद्यालय की राजनीति शास्त्र की प्रो नीलम चैरे ने दीनदयाल के दर्शन को विस्तार से सामने रखते हुए बताया कि पंडित के दर्शन में मनुष्य केंद्र में है और धीरे-धीरे यह विस्तार पाते हुए ब्रह्मांड तक पहुंचता है। इस दर्शन में शरीर के सुख के साथ-साथ मन, बुद्धि व आत्मा के सुख की भी बात की जाती है। शरीर स्थूल है तथा मन बुद्धि और आत्मा सूक्ष्म। मनुष्य इन सब का समुच्चय है, इसलिए सब के ऊपर कार्य करने की जरूरत है। व्यष्टि से समष्टि और फिर परमेष्टि, यही दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन है। पश्चिम के दर्शन में सिर्फ शरीर और बुद्धि पर ही जोर है मन और आत्मा के सुख पर कोई कार्य नहीं है। दीनदयाल की अर्थनीति को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है गौण और मुखर। अपनी आवश्यकता के लिए व्यक्ति जो करता है वह मुखर रूप से करता है और समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए जो भी करता है वह गौण रूप से करता है। प्रकृति को अपने साथ जोड़ करके रखना इस विषय पर पंडित का बहुत जोर था। पांचजन्य, राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिकाओं में पंडित का दर्शन बिखरा पड़ा है और उसको संजोने की जरूरत है जिससे नई पीढ़ी उस पर चिंतन कर सके, मनन कर सके और समाज के लिए कुछ कार्य कर सके। पत्रकार और समाजसेवी अर्चन ने दीनदयाल के दर्शन और पश्चिमी दर्शन में अंतर को सकेंद्रित वृतों के रूप में समझाया। जिसमें एक प्रकार के वृत्त एक बिंदु से शुरू होकर आगे बढ़ते चले जाते हैं और सभी वृत्त सर्पाकार रूप में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। यह पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है जिसके केंद्र में मनुष्य है लेकिन परिवार, समाज राष्ट्र, विश्व एवं ब्रह्मांड सभी उससे जुड़े हुए हैं ,अलग अलग नहीं है। ठीक इसी प्रकार मानव की आंतरिक चेतना एवं शारीरिक सुख दोनों अलग अलग नहीं है। अखंड मंडलाकारम व्याप्तम येन समाचरेत को पंडितजी के दर्शन से समझा जा सकता है। युवा पीढ़ी को एकात्म मानववाद की आवश्यकता है और जिस प्रकार ऋषि महर्षि ध्यान में आत्मा को परमात्मा से एकाकार कर देते थे उसी प्रकार एकात्म मानववाद दर्शन को अपनाकर मनुष्य भी अपने कल्याण के साथ-साथ समस्त सृष्टि के कल्याण में परस्पर पूरक रूप से सहयोगी हो सकता है। जबकि इसके ठीक विपरीत संकेंद्रित वृत्त लेकिन अलग-अलग वृतों के रूप में अस्तित्व रखने वाले उदाहरण में भी मनुष्य केंद्र में है, लेकिन वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है क्योंकि उसका वृत्त किसी अन्य वृत्त से जुड़ा हुआ नहीं। पश्चिमी दर्शन से प्रेरित सिर्फ अपने लाभ के लिए सोचने वाला मनुष्य समस्त ब्रह्मांड के कल्याण के बारे में नहीं सोच सकता। विश्वविद्यालय के कुलपति भरत मिश्रा ने पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय के प्रारंभिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पंडित जी का जीवन सदा अभावों में बीता, शरीर से कृष्काय रहे लेकिन बुद्धि के बहुत प्रखर थे। हमेशा अब्बल दर्जे में परीक्षा उत्तीर्ण होते रहे। नाना जी और दीनदयाल जी की मित्रता काफी गहरी थी इसलिए नाना जी ने उन्हीं के नाम पर दीनदयाल शोध संस्थान की कल्पना की। यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि केंद्र सरकार ने जब युवाओं के लिए उच्च शिक्षा में कौशल या हुनर को जोड़ने की आवश्यकता महसूस की तो दीन दयाल उपाध्याय कौशल केंद्र की स्थापना जगह जगह पर हुई। इस विश्वविद्यालय को यह श्रेय प्राप्त है कि शुरुआत में जहां इस प्रकार के केंद्रों की स्थापना हुई उसी में यह विश्वविद्यालय भी सम्मिलित है। जीवन की यात्रा श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होती रहे, पंडित दीनदयाल जी का जीवन इसका अप्रतिम उदाहरण है। अपनी छोटी सी जीवन यात्रा में उन्होंने काफी साहित्य की रचना की। हमारी युवा पीढ़ी उनके चिंतन से सीख ले सकती है। जो हम पढ़े उसे गुणे भी। अपने जीवन में, अपने आचरण में उतार सकें, इसके लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन से हमें प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ आनजनेय पांडे ने अपने विचार सामने रखते हुए बताया कि जिस दर्शन की कल्पना गांधी ने राम राज्य के रूप में की ,उसी की कल्पना दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के रूप में की तथा उसे चरितार्थ करने का कार्य नाना जी के द्वारा हुआ। दीनदयाल ने राष्ट्र, राज्य और मानव के बीच अंतर संबंध को भी परिभाषित किया। वी वोक के विद्यार्थियों ने शिक्षा में व्यवहारिक ज्ञान के महत्व को दर्शाते हुए एक एकांकी प्रस्तुत की। उपस्थित दर्शक समूह ने इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की। छात्रा जाह्नवी सिन्हा ने पंडित जी के जीवन का परिचय काव्य रूप में दिया। कौशल केंद्र के प्राचार्य इं राजेश सिन्हा ने अतिथियों का स्वागत किया तथा कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर कौशल केंद्र के पुरातन छात्र और नगर पंचायत के पार्षद सिद्धांत रंजन त्रिवेदी का अभिनंदन किया गया।

कार्यक्रम का संचालन छात्र सत्यजीत और छात्रा जान्हवी ने किया। अन्य लोगों के अलावा विवि के कुलसचिव डॉ अजय कुमार, विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता इंद्र प्रसाद त्रिपाठी, खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष इं0 अश्विनि दुग्गल,वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ चंद्र प्रकाश गुजर, ग्रामीण प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष देवेंद्र प्रसाद पांडे,डॉ संतोष कुमार अरसिया, पुस्तकालय विज्ञान के डॉ सूर्य प्रकाश शुक्ला, डॉ राकेश श्रीवास्तव, मयंक राज, प्रकाश त्रिपाठी, मनीष तिवारी, लक्ष्मण गर्ग ,बाबूलाल सेन, राजबहादुर सिंह, महेश सिंह ,जब्बर सिंह, सत्यनारायण गर्ग, ज्ञानेंद्र सिंह , शिवजी पांडे मौजूद रहे।

 

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट