*भारतीय संस्कृति व वाङ्गमय के संवाहक थे आचार्य हरिहर-आचार्य राकेश पांडेय*

*भारतीय संस्कृति व वाङ्गमय के संवाहक थे आचार्य हरिहर-आचार्य राकेश पांडेय*

राष्ट्रीय (दैनिक कर्म भूमि) अंबेडकर नगर

अम्बेडकरनगर।वर्ष 1956 में काशी में आयोजित विश्व संस्कृत सम्मेलन में सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर तत्कालीन राष्ट्रपति व काशीनरेश द्वारा सम्मानित तथा आजीवन संस्कृत वाङ्गमय की साधना करने वाले आचार्य हरिहर नाथ मिश्र का निधन भारतीय संस्कृति व वाङ्गमय की अपूरणीय क्षति है।जिसकी भरपाई सम्भव नहीं है।यह उद्गार अंतर्राष्ट्रीय रामायण सेंटर,मॉरीशस के प्रधान पुजारी आचार्य राकेश पांडेय ने कही।श्री पांडेय दिवंगत आचार्य हरिहर के निधन पर शोक संवेदना प्रकट कर रहे थे।
ज्ञातव्य है कि महंत नृत्यगोपाल दास व स्वामी राम भद्राचार्य के अभिन्न सहपाठी आचार्य हरिहर नाथ मिश्र सम्प्रति अम्बेडकर नगर जनपद की आलापुर तहसील के जल्लापुर ग्राम निवासी थे।जिनकी प्रारंभिक शिक्षा महर्षि ज्ञानी जी महाराज के संरक्षण में अयोध्या स्थित राजगोपाल संस्कृत महाविद्यालय व बाद में काशी स्थित संस्कृत विश्वविद्यालय से हुई थी।जहां से उन्होंने व्याकरण शास्त्र में महारत हासिल की थी।जिसका लोहा संस्कृत विद्वान आजतक मानते है।
ज्ञातव्य है कि अयोध्या स्थित द्वापर विद्यापीठ इंटर कॉलेज,बरई पारा के प्रधानाध्यापक और ततपश्चात कानपुर स्थित डीएवी इंटर कॉलेज में संस्कृत के प्रवक्ता रहे।उन्होंने ग्रीनपार्क स्टेडियम के पास स्थित संस्कृत महाविद्यालय, परमट,कानपुर में भी बतौर प्राचार्य अपनी सेवाएं दी थी।इतना ही नहीं 1956 में माध्यमिक शिक्षक संघ,उत्तर प्रदेश के गठन में भी उनकी सक्रिय भूमिका थी।जिसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और फैज़ाबाद के जिलाध्यक्ष आद्या प्रसाद पांडेय के साथ मिलकर उन्होंने पण्डित जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज ,जवाहर नगर आदमपुर की स्थापना में सक्रिय सहयोग भी किया था और बाद में यहीं से बतौर एक शिक्षक रिटायर होकर साहित्य साधना में ततपर रहे।वे श्री लल्लन जी ब्रह्मचारी इंटर कॉलेज,भरतपुर सहित कई विद्यालयों की प्रबंध समितियों के सदस्य भी जीवनपर्यंत रहे।
आचार्य हरिहर के निधन पर अंतरराष्ट्रीय रामायण सेंटर ने शोक सभा करते हुए उनके निधन को भारतीय संस्कृति और विशेष कर संस्कृत वाङ्गमय की अपूरणीय क्षति बताया है।

रिपोर्ट विमलेश विश्वकर्मा ब्यूरो चीफ अंबेडकरनगर