पड़ताल — राहत सामग्री एवं भोजन वितरण “सेवा या प्रदर्शन” अरविंद पांडेय डॉक्टर

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर

देश पिछले आपातकाल से भी बुरे दौर में चल रहा है l उस समय के आपतकाल में सिर्फ आत्मनियंत्रण करना था जबकि आज बहुप्रचलित शब्द सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करना है l श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी ने वैश्विक महामारी कोरोना के भारत में बढ़ते प्रभाव को देखते हुए सम्पूर्ण भारत में लॉक डाउन कर दिया है l हमें अपने भोजन से लेकर रहने के तौर तरीकों तक में परिवर्तन करना पड़ रहा है फिर भी ऐसी स्थिति में भी राष्ट्र को माँ समझने वाले माँ भारती के लालो ने आत्मनियंत्रण कर अपना राष्ट्र के प्रति समर्पण प्रतिपादित किया है l

भूख शब्द आते ही हमें अंदर से झकझोर देता है और हमें अपनी कोई न कोई घटना जरूर याद आ जाती है जो “संपन्न्ता में भी विपन्नता” का भाव उत्पन्न कर देती है l अभी जिस भूख को मिटाने के लिए अमीर, गरीब सभी को बेहतर विकल्प मौजूद थे वहाँ अब लॉकडाउन में सबको सिमित विकल्पों में ही भोज्य पदार्थ मिल पा रहा है l ऐसे में सामाजिक क्षेत्र कि संस्थाए यदि आगे आकर अपने स्वयंसेवक के माध्यम से “भूखे कि भूख मिटाने” का प्रयास कर रहे है तो उनकी मुक्तकंठ से प्रसंसा होनी चाहिए l

आज हम जिस माहौल में है, उस वर्तमान संक्रमण काल के माहौल में खुद को डर और फिर डर का डटकर मुकाबला करने जैसी दोनों परिस्थितियों में हम सब पुरे धैर्य के साथ काम कर रहे है l हम ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहते है जहाँ भय और भूख का नामोनिशान न हो l दुनियाँ डरी हुई है, स्पेन कि राजकुमारी कोरोना कि मौत मर चुकि है, बड़े-बड़े सुपरस्टार अपने घरों में है फिर भी कर्मवीर को फर्क न पड़ता किसी जीत और हार का के मन्त्र लेकर कर्मयोद्धा मैदान में है l कर्मयोद्धा जब तक मैदान में नहीं आते तब तक कोई भी लड़ाई अंत तक नहीं पहुँच पाती है l यह योद्धा अपने पास हथियार नहीं रखते बल्कि यह अपने पास रखते है, रहत सामग्री के रूप में खाने का पैकट, पिने का पानी, दैनिक उपयोग कि वस्तुए और तैयार रहते है हर उस परिस्थिति के लिए जिससे वह विपत्ति में फँसे नागरिको कि मदद कर सकते है l

आज जब देश के बहुतायत राज्यों ने लॉकडाउन को बढ़ाने का स्पष्ट संकेत दे दिया है, जरुरी कार्यों को छोड़ सारा देश खुद भी अपने को घर में रहने का अभ्यस्त बना चूका है l ऐसे में जब सड़क के किनारे रहने वाले लोगो तक राहत सामग्री पहुंचाई जा चुकि है l फिर भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर पञ्च आग्रह के माध्यम से सक्षम व्यक्तियों को गरीबों कि सेवा में जुटने को कहा है l हम सभी को जुटकर इस संकट काल में मदद का हाँथ बढ़ाना चाहिए और यह हाँथ करोना के भारत से भागने तक उठा रहना चाहिए ऐसे संकल्प कि इस संक्रमण काल में आवश्यकता है l

भारत में अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है यह बात हर नागरिक जान चूका है और अपने को जिस तथ्य में वह महफूज समझता है, वैसे ही विचारो को जन्म देता है l वैसे ही विचार आज इस संक्रमण काल में भी उत्पन्न हो रहे है, कई बरिष्ठ विचारको का मत है कि सेवा भाव यानि भोजन वितरण का चित्र सोशल मीडिया पर वायरल नहीं होना चाहिए तो बहुतायत विचारक यह मानते है कि यह प्रेरणा का मूल साधन है l मेरा मत है कि मूल लक्ष्य सेवा होना चाहिए और सभी विचारको को मदद के माध्यम को ध्यान में न रखकर उनकी सेवा के भाव को समझना चाहिए l यह मैंने व्यक्तिगत रूप से महसूस किया है कि सोशल मीडिया पर चित्र डालने से लोगो में सेवा के भाव का जागरण होता है और अन्य लोग भी प्रेरित होकर नई शुरुआत करते है l

निष्कर्ष – अभी हम सबको सिर्फ और सिर्फ कोरोना से पीड़ितों एवं पशु पक्षी कि रक्षा पर ध्यान देना है l क्या सही है क्या गलत इसपर समीक्षा हम बाद में कर लेंगे, अभी चाहे जिस स्थिति में हो बस सेवाकार्य होना चाहिए l